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Wednesday, 23 November 2016

ज़िन्दगी की आँख मचोली

जिंदगी पल भर के लिए बैठती है मेरे पास,
हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।
खुद ही दर किनार करती ही मुझे खुद से,
जो हो जाऊ तो फिर हसीन मंजर दिखा जाती है।

क्यों वो खेल रही है मुझसे,
खो-खो , कबड्डी जैसे,
गिरते, उठते, सँभलते,
मुझे देखना चाह रही हो जैसे,
एक उम्मीद जो मुझे जीना सिखाये,
हर बार वो एक उम्मीद मुझे दे जाती है,
और हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।

कुछ कारवाँ चल पड़ा है अरमानों का,
काफ़िले भी बन गए है अपने अपने,
उथल-पुथल हो गया है सब कुछ,
अब हम छाँट रहे है हक़ीक़त और सपने,
हकीकत हमें पसंद नहीं,
तो वो सपनों से मन बहला जाती है,
वो फिर से हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।

                           स्वरचित

                         स्वाति नेगी

Sunday, 2 October 2016

कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।
बरसों से दोस्ती का खंज़र थे तुम छुपाये,
अब बातचीत की सारी हदे टूट चुकी है।

अब गिन-गिन के हिसाब होगा
और यकीन मनना बेहिसाब होगा
तुम छुप के 17 मारोगे,
हम खुल के हज़ार मारेंगे,
तुम समझे तुम जीत जाओगे,
हम तुम्हे जीत का असली मतलब समझाएंगे,
वो दिन गए जब तुम हमारा सिर काट कर ले गए थे
अब तो तुम्हारे सिर कलम करने की तैयारी हो चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

अगर आँख फिर से उठायी,
तो अब आँख न रहेगी,
होगा पंच में विलीन तू
कोई निशानी न रहेगी,
ये देश होगा तेरे लिए मेरे लिये मेरी माँ है,
मेरे वतन पे एक वार, और तेरी कहानी न रहेगी,
पाकिस्तान तू ले रहा है जिन आतंकियों का सहारा,
जो हमने हमला कर दिया तो तेरी ज़मात न रहेगी,
थे बंधे हाथ अब तक तो तू हवा में उड़ रहा था
अब शेरों की टोली शिकार पर निकल चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

                      स्वरचित
                    स्वाति नेगी

सेना को समर्पित

कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।
बरसों से दोस्ती का खंज़र थे तुम छुपाये,
अब बातचीत की सारी हदे टूट चुकी है।

अब गिन-गिन के हिसाब होगा
और यकीन मनना बेहिसाब होगा
तुम छुप के 17 मारोगे,
हम खुल के हज़ार मारेंगे,
तुम समझे तुम जीत जाओगे,
हम तुम्हे जीत का असली मतलब समझाएंगे,
वो दिन गए जब तुम हमारा सिर काट कर ले गए थे
अब तो तुम्हारे सिर कलम करने की तैयारी हो चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

अगर आँख फिर से उठायी,
तो अब आँख न रहेगी,
होगा पंच में विलीन तू
कोई निशानी न रहेगी,
ये देश होगा तेरे लिए मेरे लिये मेरी माँ है,
मेरे वतन पे एक वार, और तेरी कहानी न रहेगी,
पाकिस्तान तू ले रहा है जिन आतंकियों का सहारा,
जो हमने हमला कर दिया तो तेरी ज़मात न रहेगी,
थे बंधे हाथ अब तक तो तू हवा में उड़ रहा था
अब शेरों की टोली शिकार पर निकल चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

                      स्वरचित
                    स्वाति नेगी

Friday, 30 September 2016

वक्त की हेरा फेरी

आज फिर मैं तन्हा महसूस कर रही थी।
जहाँ से चली थी मैं आज फिर वही थी।
थी आरजू जो गुमनामी के अंधेरों में खो रही थी।
वो मेरी चाहतों के बाजुओं में दम तोड़ रही थी।
एक टीस बनकर रह गयी तेरी यादें,
कुछ अच्छी, कुछ बुरी में सभी निचोड़ रही थी।
था जाम भरा अच्छी यादों से मेरा,
एक बुरी याद जब ज़हर बनकर उसमें मिली थी।
जो चेहरे पर मेरे हँसी की सलवटें थी,
वो उदासी में करवटे बदल रही थी।

किसी ने पुकारा था मुझे अपनी बाह खोले,
वादा किया था भर देगा ख़ुशी से झोले,
हाँ वादा निभाया उसने काफी हद तक,
दिया साथ मेरा उसने आधे सफर तक,
मेरी मुस्कराहट पतझड़ के जैसे झड़ रही थी।
वो कल से अब तक के बीच लड़ रही थी।

लगा मैंने एक खूबसूरत ख़्वाब देखा,
जो टूट गया जो मैंने आँख खोली,
सोचा रो लू पर आँख से आँसू न निकला,
क्योंकि मुझे भी पता था ख़्वाब था हसीन पर उम्र थी थोड़ी,
मुझे लगा मेरे हाथ में गुलाब का सुर्ख लाल रंग है,
पता चला वो तो काँटों से मेरी हथेली रंग रही थी।
मैं जिसको रंग समझी वो खून से मुझे सन रही थी।

ये एहसास भी जरुरी था, ये अंजाम भी जरुरी था,
क्योंकि मैं अपने मुकद्दर से लड़ रही थी।
भूल गयी थी कठपुतली हूँ मैं भी मुकद्दर की,
मैं अपनी ख्वाहिशों से ज्यादा ऊँची उड़ रही थी।

                                  स्वरचित
                                 स्वाति नेगी

Wednesday, 17 August 2016

गौ रक्षा का सच

गौ रक्षा के कसीदे पढ़ने वाले लोग गौ रक्षा के नाम पर आंदोलन करते है लेकिन जब गौ संरक्षण की बात आती है तो सब न जाने कहा विलुप्त हो जाते है। लोग धर्म के नाम पर गौ रक्षा का ढिंढोरा पीटते रहते है पर जब ऐसे मसले सामने आते है तो इन लोगों की ढोल की पोल खुल जाती है। जहाँ एक तरफ गाय को माँ का दर्जा देने वाला हिन्दू समाज ही जब उसकी रक्षा के लिए आगे नहीं आना चाहता तो राष्ट्रीय माता का दर्जा दिलाने का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता। आजकल ये एक प्रथा बन चुकी है कि सबके आगे माँ जोड़ देने से ही सम्मान होता है जैसे भारत माँ , गंगा माँ , गौ माँ इत्यादि, पर असल में सम्मान किसका होता है? यह एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है भारत माता पर लोग देशविरोधी गतिविधियों में भाग लेकर वार करते है, गंगा माता में पाप भी धोते है और कचरा फेक कर गन्दा करते है और गाय माता को मात्र एक साधन बनाया है मरते वक्त स्वर्ग जाने का शादी के वक्त गो दान का, गौ मूत्र , गोबर , दुग्ध उत्पादन का भोग करने के लिए। हालांकि कांजी हाउस नाम की जगह आवारा गाय के लिए सरकार द्वारा आवंटित की गयी थी पर वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है और बंद है सवाल उठता है कि सरकार ऐसे पशुओं की व्यवस्था के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है या सरकार की नीतियों को कुछ भ्रष्ट नेता पूरा नहीं होने दे रहे। खैर कांजी हॉउस का बंद होना बहुत चिंता का विषय है।आज बड़ी खुशी हुई के मुस्लिम धर्म के लोग गौ सेवा के लिए आगे आये उम्मीद है कुछ हिन्दुओ का भी दिल पिघले। आकृति प्राणी सेवा संस्थान की सुषमा जखमोला दीदी जैसे लोगो ने आज भी गौ रक्षा के लिए तत्पर है हम सबको इनका साथ देना चाहिए। इस मौके पर सुषमा जखमोला जी, श्री जखमोला जी, तृष्णा वेलफेयर सोसाइटी की स्वाति नेगी, अमरदीप व अन्य स्थानीय लोग मौजूद थे। ये घटना रेलवे स्टेशन के नीचे लकड़ी पड़ाव की है जो काशीरामपुर के समीप है। मौके पर सुषमा जखमोला जी के द्वारा डॉक्टर को बुलाया गया तथा first-aid दिया गया।
Article by
स्वाति नेगी

Friday, 5 August 2016

सिक्के के दो पहलू

उसके कपडे बहुत कुछ कह गए।

कोहनी के पास फटा हुआ था,
उसका मुँह भी लटका हुआ था,
पेंट भी घुटनो का झरोखा बन गयी,
ढीली थी कमर इसलिए low waist बन गयी,
कमीज का एक बाजू नही था,
बटन नहीं थे पर काज सही था,
उसकी आँखों में वो एहसास नहीं था,
जकड़ लिया हीन भावना ने उसे,
क्योंकि उससे किसी को प्यार नहीं था,

वही दूसरी तरफ

वो रगड़ रहे थे जैकेट कोहनी दिखाने को,
Jeans भी काट डाली घुटने दिखाने को,
Low waist का fashion सर चढ़ कर बोल रहा था,
और कोई अपनी jeans घुटनो तक मोड़ रहा था,
उनकी भाषा में इसे style कहते है,
क्योंकि वो लोग swag में रहते है,

किसी की मज़बूरी किसी के लिये  अदा बन गए,

उसके कपडे बहुत कुछ कह गए।।।
     
                 स्वरचित
               स्वाति नेगी

Saturday, 30 July 2016

Ray Of Hope

Oh God you always gave me,
A ray of hope, a ray of hope.

Yes I was surrounded by lots of enemies,
Most of them was my best buddies,
Oh yes how fool was I ,
They were in front of me and I closed eyes,
You make me awake timely
Oh God you always gave me,
A ray of hope , a ray of hope.

I was suffering through heart-break,
All the moments I captured was fake,
I feel myself in the depth of dark,
I was wondering that I had no one to talk ,
There were unbelievable facts in front of me,
Oh God you always gave me,
A ray of hope , a ray of hope.

It happens continuously with my life,
My friends my relatives no one was my side,
No one accept that I am innocent,
A painful experience and my mind goes blank,
But after sometimes I feel happy,
Because you were always there for me,
Oh God you always gave me,
A ray of hope , a ray of hope.


Thursday, 28 July 2016

उलझन

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते,
बिखरे पन्ने किताब नहीं होते,
यूंही वीरान कट जाती है कुछ रातें,
कुछ रातों के ख़्वाब नही होते।

जिन्दगी में मिलती है कामयाबी भी,
लेकिन कुछ कामयाबियों के ख़िताब नही होते।

यूं तो ख़ुशी और गम सब पल है जिन्दगी के,
पर कुछ लम्हे है जिनके हिसाब नहीं होते।

दर्द भी बहुत मिलते है इस लंबे सफर में,
कुछ दर्द ऐसे भी है जिनके एहसास नही होते।

बहुत कुछ सोच लेते है हम बिना किसी मतलब के,
क्योंकि सोचने के कोई आकार नहीं होते।

कई रिश्ते बनाते हम अपनी मर्ज़ी से,
पर कई रिश्तों से हम आबाद नही होते।

जो रिश्ते जुड़ गये है उनसे खुश है लेकिन,
कुछ रिश्ते ऐसे है जिनमे जज़्बात नहीं होते।

घूमती है घड़ी की सुइयाँ टिक-टिक टिक-टिक
और कुछ पलों  के आग़ाज नही होते।

खिलखिलाती है कलियाँ महकता है गुलशन,
उस गुलशन में काँटों पर बखान नही होते।
   

                                 स्वरचित
                                स्वाति नेगी

Sunday, 24 July 2016

नारी का मौन प्रश्न

तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?
मेरी पवित्रता का मोल कब जानोगे ?

कभी बाहर निकलती हूँ जो घर से,
तुम्हारी गिद्ध जैसी नज़रों से आहत होती हूँ।
क्या में आहार हूँ तुम्हारा ?
ये बात सोच - सोच कर रोती हूँ।
क्यों मैं खुल के जी नहीं सकती ?
जो चाहूँ वो कर नहीं सकती,
तुम मुझे ये दंश कब तक दोगे ?
तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?

क्या मैं तुम्हारे लिये मात्र मनोरंजन की वस्तु हूँ ?
या मैं तुम्हारी संतुष्टि मात्र का साधन हूँ।
क्या तुम्हारी अतृप्त प्यास को बुझाना इतना ज़रूरी है,
कि तुम किसी भी लाचार पर एसा भयंकर क़हर बरसाओगे ?
खुद की हवस की भूख मिटाकर,
क्या मेरा पाक चरित्र फिर से वापस ला पाओगे ?
धिक्कार है तुम्हारे इंसान होने पर,
तुम्हारे पुरूष होने का अभिमान होने पर,
पुरूष तो नारी का संरक्षक है,
न की उसका भक्षक है,
इस कृत्य के लिये तुम कब नर्क भोगोगे ?
तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?

पुरूष और नारी एक दूसरे के पूरक है,
दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं,
कोई भी कार्य तभी शुभ फलदायक है,
जब दोनों की सहमति हो।
वो कार्य पाप से कम नहीं जिसमें
किसी की भी असहमति हो।
नारी का तो सर्वश्रेष्ठ स्थान है,
क्योंकि नारी ही तेरी उत्पत्ति का आधार है।
तुम्हारा पौरूष है युद्ध के स्थान में वीरता दिखाना,
न कि एक अबला नारी से बलपूर्वक अपनी इच्छा मनवाना,
अपने पौरूषत्व की माला तुम कब तक जपोगे ?
तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?
                      स्वरचित
                     स्वाति नेगी

Wednesday, 13 July 2016

हमारी खामोशी

कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
जो बाते ज़ुबान से बयान नहीं होती,
वो नजरों से बयान हो जाती है।

कभी हम नजरें झुकाते है , कभी नजरें उठाते है
कभी खुद को संवारते है, कभी तुम्हें निहारते है
कभी भरते है आँहे, कभी हम शरमा जाते है।
हमारी दिल्लगी ही ऐसी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

अगर तुम न समझ सको इसे, तो तुमपे न एतबार करेंगें
नज़रें फेर लेंगे तुमसे, न तुम्हारा इंतज़ार करेंगे
अगर न पहचानोगे तो बताओ हम कैसे तुम्हे प्यार करेंगे।
हमारी नाराज़गी भी ऐसी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

अगर हम बात न करे तुमसे, तो तुम्हे मनाना होगा
प्यार का ये फर्ज़ , तुम्हे भी निभाना होगा
एक बार कोशिश तो करो हमारी नज़रों को पढ़ने की
तुम्हे भी प्यार है हमसे, ये जाताना होगा।
हमारी ख्वाहिश बस इतनी सी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

हमारी हरकतों को समझो, हमारे चेहरे को पढ़ लो
अगर हम बात न करें तो, खामोशी की वज़ह समझो
हमारी मुस्कुराहटों को, हमारे दर्द को समझो
हमारी कहानी बस इतनी सी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

                               स्वरचित
                              स्वाति नेगी

Friday, 1 July 2016

एक वादा

आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,
उसकी दी सारी खुशियां सारे ग़म अपने दामन में भर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

एक वादा कभी न रुकने का,
एक वादा कभी न थकने का,
एक वादा खुशियां लाने का,
एक वादा ग़म भुलाने का,
आओ कुछ खट्टी मीठी यादों से
जिंदगी में रंग फिर से भर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

मुसीबतों के आगे घुटने न टेकने का वादा,
विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न खोने का वादा,
हर पल खुद पर विश्वास रखने का वादा,
फिर से जिंदादिली से जिंदगी जीने का वादा,
जिंदगी की राहों में वो मंजिलों का रास्ता फिर से तय कर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

वादा ऐसा जो कभी न टूटे,
जिंदगी का साथ कभी न छूटे,
वादा ऐसा जो विश्वास न तोड़े,
कैसी भी राहे हो हाथ न छोड़े
इस बार एक नई सुबह के साथ जिंदगी में चिड़ियों की चहचाहट भी भर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

खुद को संवारना है एक वादा ऐसा भी,
खुद के लिए भी जीना है एक वादा ऐसा भी,
खुद से खुद की पहचान करानी है एक वादा ऐसा भी,
खुद की नज़र में कभी नही गिरना है एक वादा ऐसा भी,
चलो एक बेहतर जिंदगी की शुरुआत खुद से ही कर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,
                       

                                       स्वरचित
                                      स्वाति नेगी

Tuesday, 28 June 2016

कशमकश

वक्त की चादर पर ऐसी सलवटे पड़ रही है,
कि नज़दीकियां दूरियों में बदल रही है।

हमने कोशिश की जितना समेटने की
उतनी ही जिंदगी ज्यादा बिखर रही है।

कुछ ऐसा रिश्ता जुड़ गया है आँखों का होंठो से
कि होंठो की हँसी आँखों की नमी में बदल रही है।

कैसे मोड़ पर लाके खड़ा किया तकदीर ने
जो पास है वो साथ नहीं, जो साथ है वो पास नहीं,
लोगों की तलाशने में ही सहर गुजर रही है।

अपनों ने ही ज़माने भर के इल्ज़ाम लगा दिए,
विश्वास के वादे एक पल में भुला दिए,
मैं कहाँ गलत हो गयी बस इसी कशमकश में दिन रात गुजर रही है।

जिसे माना हमने जहान में सबसे ज्यादा
उसकी आवाज़ में भी बेरुखी के तार छिड़ गए,
जो सुनके दिल सहम गया वही अल्फ़ाज़ रुक गए,
अब वो सारी प्यार भरी यादें मेरे आँसुओ में सिमट रही है।

                                       स्वरचित
                                      स्वाति नेगी

ज़िन्दगी तेरा इरादा क्या है?

ज़िन्दगी तेरा इरादा क्या है?

तेरे दर्द की इन्तहा अब हद से बढ़ रही है,
मेरी साँसे तेरी मोहलत पे चल रही है,
यूँ बैचेन न कर, बता तेरा इरादा क्या है?

ज़िन्दगी तेरा इरादा क्या है?

क्यों तूने एज झूठा सा ख्वाब दिखाया है?
नदी के दो किनारो सा मुझे मिलाया है
न मैं हाथ थाम सकूँ तेरा, न तेरा दामन छोड़ सकूँ,
तूने खुद को मुझसे बेगाना बनाया है।
तू इस चिलमन को गिरा, बता तेरा इरादा क्या है?

ज़िन्दगी तेरा इरादा क्या है?

तू मेरा हौसला परख रही है , या फिर मुझपे हँस रही है
तू मेरी हमसफ़र बन रही है, या मुझे अपने दर से रुखसत कर रही है।
क्यों तू मेरे लिये एक पहेली सी बन रही है?
यूँ सवाल खड़े न कर, बता तेरा इरादा क्या है?

ज़िन्दगी तेरा इरादा क्या है?

तेरा जो भी इरादा हो, है कुबूल मुझको,
पर इत्तिला जरूर कर देना जताने से पहले।
कर सकूँ अरमान कुछ पुरे जो पुरे नहीं है,
चन्द मोहलत तू दे देना जाने से पहले।
फिर न पूछेंगे तुझसे, तेरा इरादा क्या है?

ज़िन्दगी तेरा इरादा क्या है?

                           स्वरचित
                         स्वाति नेगी


Friday, 12 February 2016

मेरा नींद से रिश्ता

कितनी खूबसूरत है ये नींद
दबे पाँव आती है और मुझे अपने आग़ोश में भर लेती है।

कुछ लम्हा चुरा लेती है वो मुझे सबसे
मुझे दुनिया से बेगाना कर देती है।
कुछ कहती नहीं खामोश रहती है
बस यादों के हवाले कर देती है।
मुझे दिखाती है वो नए नए खेल
फिर मुझपे वो खिलखिलाती है।

कोई लाख जगाना चाहे मुझको
वो मुझे सबसे बेगाना कर देती है।
बस उसका ही सुरूर छाया रहता है
वो इतना बेपरवाह कर देती है।........

कुछ ऐसा रिश्ता है मेरा नींद से...... to be continued.

             Poet
         Swati Negi