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Friday, 18 April 2014

Hay Rajneeti!

हाय राजनीति बनी बवाल
राजनेताओं की साज़िश और चाल
हाय राजनीति बनी बवाल।

भ्रष्टाचार और महँगाई
इनकी खाई खूब मलाई
मोटा पैसा गए डकार
गरीब जनता पे पड़ गयी मार
संसद में लड़ाई और दंगा
बाहर आकर सब कुछ चंगा
जनता पिसती जाए इन सबमें

आया अब जनता में उबाल
हाय राजनीति बनी बवाल।

मैं ज्यादा तू कम ही खाना
मिलकर गाये सब  गाना
तेरी या मेरी सरकार
मिलकर करेंगे देश पे वार
करोड़ो से अब भर गया पेट
अब अरबों का करना है वेट
अन्ना जी ने जलायी मशाल
जल्दी आएगा लोकपाल
पर देश का संचालक मूक बधिर है
यही समस्या बड़ी जटिल है
रामदेव भी बचे  इससे

देख लो साधू बाबा का हाल
हाय राजनीति बनी बवाल।

मत  पूछो बस इनकी बात
दानवों को भी देदी इन्होंने मात
नोटों के गद्दे नोटों की रजाई
पूरी हवेली नोटों से सजाई
ऐसे मनती है इनकी दीवाली
गरीब के घर न दाना पानी
भ्रष्टाचार के रंग में लिपटे
होली खेल रहे है जमके

ऐसे ही मनाते है  त्यौहार
हाय राजनीति बनी बवाल

बच्चों ने भी  बाप से सीखा
सब कुछ इसने आप से सीखा
पहले देश पुरखो ने खाया
बाकी बचा बेटे को थमाया
ये तो पूरी खानदानी बीमारी है
ये आगामी चुनाव की तैयारी है
अभी तो हाथ जोड़ने का वक्त
बाद में हाथ तोड़ने का वक्त है
ये राजनीति का नियम बड़ा सख्त कई
सब जगह फैला गरीब का रक्त है

समझो इसे ये है राजनीति का जाल
हाय राजनीति बानी बवाल।
                               स्वरचित
                              स्वाति नेगी

Wednesday, 16 April 2014

सुंदरता (BEAUTY)

Mai sochu kya hai sundarta.......

Mai manan karu, mai chintan karu,
Kya kaaya mai hai sundarta, yaa chhayaa mai hai sundarta,

Mai sochu kya hai sundarta.......

Jo tan sundar ho praani ka, chakshu bhi bandhe reh jate hai,
Ye kaisi hai mukh ki maaya, sab darshan ko lalchate hai,
Nayno ke dwar se wo pratima, hriday me kuch ese bas jati hai,
Kare laakh prayatn bhulaa dena ka, par ek amit chhap reh jaati hai,

Kya sach mai esi hai sundarta,
Mai sochu kya hai sundarta.......

Ye duniya sundarta par nyuchhawar hai, ye bas bahya aakarshan ka saawan hai,
Sab bhul gaye ham jante hai rituai to badalti belaa hai,
Koi truti nahi hai tum sabki ye sundarta ka maila hai,
Tan shan bhar k liye hi, tumhe unchayi par pahuchata hai,
Par man ki pawan nirmalta se har pal ek nayaa shikhar mil jaata hai,
Ye shanik nahi ye deerghayu hai, ye shareer ka saath nibhata hai,
Tan Man dono sang sang hai, tu kyu inme matbhed banata hai,

Man jaisi nirmal hai sundarta,
Mai sochu kya hai sundarta.......

Sun Sun prani meri vani, tan man ka tu mol bhaw naa kar,
Hai agar teri bhaawna sahi, to vyarth ki baaton ka pashchatap na kar,
Bas karna itna jeewan bhar, shareer se sundar tumhari aatmaa ho,
Ho chaah uski sarvshaktimaan ko, parmatma mai vileen wo param aatma ho,

Fir nishchhal teri sundarta,
Mai sochu kya hai sundarta.......

Sunday, 13 April 2014

लहरें.......

लहरे आती है फिर आके  चली जाती है
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास
समंदर के  अंदर समंदर के बाहर
कभी मझदार तो कभी किनारे का आभास

मैं छूना चाहूँ उसको  वो वापस चली जाती है
और फिर दूर  जाकर मुझसे  वो बड़ा इतराती है
फिर मेरी राहों में मचलकर वापस आ जाती है
मानो रोकती हो मुझको और कहती हो

ये पल ही तो है हमारे पास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।

फिर मेरी कल्पना ने जाने कैसे बांह खोली
समंदर दिख रही हो जैसे दुल्हन नवेली
उसका आना और लौट कर जाना
 जैसे दिखा रही थी मुझको वो अपनी अटखेली
और कहती करके वो मुझसे हँसी ठिठोली

ये लम्हा यादगार बन जाए बना दो इतना ख़ास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।


ये पूरा नज़ारा इतना मनभावन है  
जितना तेरा मेरा रिश्ता पावन है
मैं  बैठा हूँ किनारे पे और ये सोच रहा हूँ
कहाँ  था अब तक मैं खुद को कोस रहा हूँ
जिस सुंदरता को मैं इधर उधर तलाश रहा हूँ
वो तो मेरे पास ही है इस  बात से मैं हैरान हुवा हूँ

वो मुझसे पूछती हो जैसे  तुम्हारा मन क्यों है उदास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।


मैं आगे फिर बढा इस बार अपनी साँस थामे
जैसे जा रहा हूँ मैं भी उसको मनाने
मैं धीरे धीरे जैसे उसकी गोद समा गया
मानो वो मुझसे कह रही हो जैसे
तुम्हें भी मनाना आ गया

चलो मैं मान गयी अब न करना मुझे नाराज़
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास



                                 स्वरचित
                            स्वाति नेगी


Monday, 12 August 2013

मेरा वतन

ये है मेरा वतन   ये है मेरा वतन
गुलशनो का चमन  ये है मेरा वतन
हर तरह के फूल है हर तरह के रंग है
हर एक फूल है नया और नया सा ढंग है
है नये नये गुलशन ये है मेरा वतन


कई है बोलियाँ   कई मजहब यहाँ
कई त्यौहार है    दिलों में प्यार है
है दिल को दिल से जोड़ता
ये हमारा हिंदुस्तान है
रहमते और करम ये है मेरा वतन


है इतना सब कुछ फिर भी ---------


सरहदो पे क्यों लहू है तैरता
देश को चलाने वाला देश को है बेचता
क्यों लड़ रहे है आज आपस में वो सभी
जिन्हें गुमान था आज क्यों है प्यार फेंकता
न जाने क्यों हुआ मेरे वतन का हाल ये
दिलों में प्यार था कहाँ गया माहोल ये
न है जिनके दिलों में वफ़ा वतन के लिए
इन देशद्रोहियों को देश से निकाल  दे



होगी एक दिन नई सुबह
लेके एक नई किरन  ये है मेरा वतन
ये है मेरा वतन 

       स्वरचित 
      स्वाति नेगी

Monday, 15 July 2013

मेरी चाहत

मै क्या चाहती हूँ ?
बस अपने पैरों पे चलना .
मै क्या चाहती हूँ ? 
बस माँ की छाव में पलना

माँ तुम भी तो यही चाहती हो
जब में  कोई हलचल नहीं करती
तो तुम भी तो घबरा जाती हो
मेरे नए-नए खेल तुमको कितना लुभाते है
कितना मधुर एहसास है ये
ये बीते पल फिर वापस लौट के नहीं आते है
माँ फिर क्यों दुनिया की चिंता करना 
मै क्या चाहती हूँ ?
खुली हवा में उड़ना

मेरी हर एक सांस तुझसे जुडी है
मेरी धड़कन की एक एक कड़ी तू ही है
तेरे अन्दर कितनी सुरक्षित हु में
तुझ जैसी ही तेरी छाया प्रति हु में
चाहे अपने हो या पराये
फिर इन लोगो से क्यों डरना
मै क्या चाहती हूँ ?
बस थोडा सा हँसना


आज  फिर तुम गयी थी अस्पताल
डॉक्टर से जानने अपना हाल
मेरे मन में उठते  है कई सवाल
क्या तुम समझ न पायी  उनकी चाल
वो बुन रहे है अपने षड़यंत्र का जाल
माँ अब क्या मुझे पड़ेगा मरना
मै क्या चाहती हूँ ?

तेरी आँखों का तारा बनना
तू चिंता मत कर में लडूंगी तेरे लिए
तुझे लाऊँगी  इस दुनिया में और जीयूँगी
कोई लाख कोशिश  करले
में किसी की एक न मानूंगी
इस बार चुप नहीं बेठुंगी
मै अपनी आवाज  तानुगी
 में भी तो चाहती हु
तेरी परवरिश करना
मै क्या चाहती हूँ ?
माँ तेरी लोरी सुनना
            स्वरचित
          स्वाति नेगी


Sunday, 30 June 2013

Yai Kaisi Shikayat

Yai Kaisi Shikayat


Har baat khatm ho jati hai, fir se sulah ho jati hai.
Par fir bhi reh jati hai shikayat..
Kabhi apno se hoti hai, kabhi sapno se hoti hai.
Kabhi gairon se hoti hai, kabhi bairon se hoti hai.
Ham sabko hoti hai shikayat..
Mummy se hoti hai, papa se hoti hai.
Bhai ke gusse se kabhi didi se hoti hai.
Har kisi ko hoti hai shikayat..
Bado se hoti hai, chhoto se hoti hai.
Kuch kharo se hoti hai to kuch khoto se hoti hai.
Har baat pe hoti hai shikayat..
Rishte sambhalo to hoti hai, agar bigado to hoti hai.
Kabhi gharwalo se hoti hai, to kabhi rishtedaro se hoti hai.
Har rishte me hoti hai shikayat..
Kabhi kaam se hoti hai, to kabhi naam se hoti hai.
Kabhi sunsan sadak se to kabhi sadak pe jaam se hoti hai.
Har mod pe hoti hai shikayat..
Yu to nafrat se b hai, yu to pyaar me bhi hai.
Vishwaas mai bhi hai to vishwaasghat mai bhi hai.
Har ehsaas mai hoti hai shikayat..

Tuesday, 25 June 2013

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