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Monday, 15 July 2013

मेरी चाहत

मै क्या चाहती हूँ ?
बस अपने पैरों पे चलना .
मै क्या चाहती हूँ ? 
बस माँ की छाव में पलना

माँ तुम भी तो यही चाहती हो
जब में  कोई हलचल नहीं करती
तो तुम भी तो घबरा जाती हो
मेरे नए-नए खेल तुमको कितना लुभाते है
कितना मधुर एहसास है ये
ये बीते पल फिर वापस लौट के नहीं आते है
माँ फिर क्यों दुनिया की चिंता करना 
मै क्या चाहती हूँ ?
खुली हवा में उड़ना

मेरी हर एक सांस तुझसे जुडी है
मेरी धड़कन की एक एक कड़ी तू ही है
तेरे अन्दर कितनी सुरक्षित हु में
तुझ जैसी ही तेरी छाया प्रति हु में
चाहे अपने हो या पराये
फिर इन लोगो से क्यों डरना
मै क्या चाहती हूँ ?
बस थोडा सा हँसना


आज  फिर तुम गयी थी अस्पताल
डॉक्टर से जानने अपना हाल
मेरे मन में उठते  है कई सवाल
क्या तुम समझ न पायी  उनकी चाल
वो बुन रहे है अपने षड़यंत्र का जाल
माँ अब क्या मुझे पड़ेगा मरना
मै क्या चाहती हूँ ?

तेरी आँखों का तारा बनना
तू चिंता मत कर में लडूंगी तेरे लिए
तुझे लाऊँगी  इस दुनिया में और जीयूँगी
कोई लाख कोशिश  करले
में किसी की एक न मानूंगी
इस बार चुप नहीं बेठुंगी
मै अपनी आवाज  तानुगी
 में भी तो चाहती हु
तेरी परवरिश करना
मै क्या चाहती हूँ ?
माँ तेरी लोरी सुनना
            स्वरचित
          स्वाति नेगी


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