कभी कभी बस नींद नहीं आती बातें काटती रहती हैं,
रातें बांटती रहती हैं, उस दर्दभरी लम्हातों की टीस नहीं जाती,
कभी कभी बस नींद नहीं आती।।
रातें खामोश थी पर आज शोर मचाती हैं,
ख्वाबों की चादर फिर तेजी से उड़ जाती है,
सवालों से पूरा दिमाग भर जाती है,
सवालों का जवाब पूंछू तो जवाबदेही की हामी नहीं आती,
कभी कभी बस नींद नहीं आती।।
मुकद्दर की हंसी सुनाई देती है,
अंधेरों में सच्चाई दिखाई देती है,
आस अभी जिंदा है या नही,
यही उलझन और उलझती दिखाई देती है,
सुलझाना चाहती हूं उसे पर वो हाथ नहीं आती,
कभी कभी बस नींद नहीं आती।।
बाहर से शांत पर अंदर मन चीख रहा है,
हर एक मुखौटे के पीछे सच छिप रहा है
मैं हार नही मान रही तो चिढ़ रहा है
झूठ का दलदल मुझे खींच रहा है
एक उम्मीद अभी बाकी है जो कभी नहीं गिराती,
कभी कभी बस नींद नहीं आती।।
इस सन्नाटों की आवाजें आती हैं,
दिल की धड़कने बढ़ती है रूह घबराती है,
दिमाग समझाती हूं शांत रहो नींद अभी आती है,
चेहरे पर एक जबरदस्ती की मुस्कान लाई जाती है,
खुद को ही लोरी सुनाकर आंखे बन्द नहीं हो जाती
कभी कभी बस नींद नहीं आती।।
स्वरचित
स्वाति नेगी
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