बहुत सारे किस्से हैं,
बहुत सारे फसाने हैं,
कुछ तुमसे सुनने हैं,
कुछ तुमको सुनाने हैं,
कुछ कागज़ों पर लिखने हैं,
कुछ तुमको समझाने हैं,
कुछ यादों के बादल हैं,
जो फिर से बरसाने हैं,
कुछ धूल हटाकर,
फिर से मंच सजाने हैं,
कुछ लफ्जों से बयान होगी बातें,
कुछ आंखों से इशारे समझाने हैं,
कुछ कुछ तो नहीं बहुत कुछ है,
उस कुछ के अनसुलझे किस्से सुलझाने हैं।।
स्वरचित
स्वाति नेगी
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