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Wednesday, 17 January 2024

चीखती खामोशी

हम खामोश हैं पर फिर भी चीख है,
सूरज की तपती धूप में अंधेरों की पीड़ है।।

राहें साफ दिख रहीं हैं दूर से,
पास से कंकड़ों की सेज है,
हां बेहतर लग रही थी सारी फिजायें,
पर उन हवाओं में उजड़ी सी धूल है,
हर सुनहरी चीज़ नहीं है सोना,
उस चमक में दरारों को टीस है।

हम खामोश हैं पर फिर भी चीख है,
सूरज की तपती धूप में अंधेरों की पीड़ है।।

जीवन के सीधे सादे सफर में,
ऊबड़ खाबड़ रास्तों की खान है,
सुनसान सड़कों में न जाने क्यों,
नफ़रत का चीखों का शोर है,
काबिल हैं हम लड़ने में शायद,
तभी तुमने लगाई जंगों की भीड़ है,

हम खामोश हैं पर फिर भी चीख है,
सूरज की तपती धूप में अंधेरों की पीड़ है।।

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