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Monday, 14 January 2013

Naari Teri Wahi Kahani

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।
हे जग जननी ! हे जग माता !  किसी ने न समझी तेरी परेशानी।

सोना तपकर निखरता है जैसे , वैसे ही तू क्यों नहीं निखरी।
तेरी वो खिलखिलाती हँसी , इस समाज मे क्यों नहीं बिखरी।
क्यों तू अपना आत्म-सम्मान न पहचानी?

 सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

तेरी सेवा का कोई मोल नहीं , फिर भी तू धुत्कारी  जाती है। .
तेरी ममता का कोई तोल नहीं , फिर भी तू सताई जाती है। .
 क्यों तूने अपनी आवाज न तानी ?

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

कितना पाक़ है तेरा तेरा नारीत्व , फिर भी तुझसे ही सफाई माँगी जाती है।
तेरी तुलना देवी से करते है , पर तेरी लाचारी किसी को नहीं दिखायी जाती है।
क्या तू अब भी बनी है इन सबसे अनजानी ?

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

तेरे बिना हर कार्य अधूरा,
तेरे क्रोध की ज्वाला से , भस्म हो जाये ब्रह्माण्ड ये पूरा।
फिर क्यों तू ही हरबार सतित्व की बलि चढ़ायी जाती है ?
क्यों तेरी इस जग ने एक न मानी ?

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

स्वरचित -- स्वाति नेगी 

1 comment:

Er. Umesh said...

Thousands of words will be less to praise a woman. I hope swati your little effort will not a waste! Keep doing good things. Love!!