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Monday, 12 August 2013

मेरा वतन

ये है मेरा वतन   ये है मेरा वतन
गुलशनो का चमन  ये है मेरा वतन
हर तरह के फूल है हर तरह के रंग है
हर एक फूल है नया और नया सा ढंग है
है नये नये गुलशन ये है मेरा वतन


कई है बोलियाँ   कई मजहब यहाँ
कई त्यौहार है    दिलों में प्यार है
है दिल को दिल से जोड़ता
ये हमारा हिंदुस्तान है
रहमते और करम ये है मेरा वतन


है इतना सब कुछ फिर भी ---------


सरहदो पे क्यों लहू है तैरता
देश को चलाने वाला देश को है बेचता
क्यों लड़ रहे है आज आपस में वो सभी
जिन्हें गुमान था आज क्यों है प्यार फेंकता
न जाने क्यों हुआ मेरे वतन का हाल ये
दिलों में प्यार था कहाँ गया माहोल ये
न है जिनके दिलों में वफ़ा वतन के लिए
इन देशद्रोहियों को देश से निकाल  दे



होगी एक दिन नई सुबह
लेके एक नई किरन  ये है मेरा वतन
ये है मेरा वतन 

       स्वरचित 
      स्वाति नेगी

Monday, 15 July 2013

मेरी चाहत

मै क्या चाहती हूँ ?
बस अपने पैरों पे चलना .
मै क्या चाहती हूँ ? 
बस माँ की छाव में पलना

माँ तुम भी तो यही चाहती हो
जब में  कोई हलचल नहीं करती
तो तुम भी तो घबरा जाती हो
मेरे नए-नए खेल तुमको कितना लुभाते है
कितना मधुर एहसास है ये
ये बीते पल फिर वापस लौट के नहीं आते है
माँ फिर क्यों दुनिया की चिंता करना 
मै क्या चाहती हूँ ?
खुली हवा में उड़ना

मेरी हर एक सांस तुझसे जुडी है
मेरी धड़कन की एक एक कड़ी तू ही है
तेरे अन्दर कितनी सुरक्षित हु में
तुझ जैसी ही तेरी छाया प्रति हु में
चाहे अपने हो या पराये
फिर इन लोगो से क्यों डरना
मै क्या चाहती हूँ ?
बस थोडा सा हँसना


आज  फिर तुम गयी थी अस्पताल
डॉक्टर से जानने अपना हाल
मेरे मन में उठते  है कई सवाल
क्या तुम समझ न पायी  उनकी चाल
वो बुन रहे है अपने षड़यंत्र का जाल
माँ अब क्या मुझे पड़ेगा मरना
मै क्या चाहती हूँ ?

तेरी आँखों का तारा बनना
तू चिंता मत कर में लडूंगी तेरे लिए
तुझे लाऊँगी  इस दुनिया में और जीयूँगी
कोई लाख कोशिश  करले
में किसी की एक न मानूंगी
इस बार चुप नहीं बेठुंगी
मै अपनी आवाज  तानुगी
 में भी तो चाहती हु
तेरी परवरिश करना
मै क्या चाहती हूँ ?
माँ तेरी लोरी सुनना
            स्वरचित
          स्वाति नेगी


Sunday, 30 June 2013

Yai Kaisi Shikayat

Yai Kaisi Shikayat


Har baat khatm ho jati hai, fir se sulah ho jati hai.
Par fir bhi reh jati hai shikayat..
Kabhi apno se hoti hai, kabhi sapno se hoti hai.
Kabhi gairon se hoti hai, kabhi bairon se hoti hai.
Ham sabko hoti hai shikayat..
Mummy se hoti hai, papa se hoti hai.
Bhai ke gusse se kabhi didi se hoti hai.
Har kisi ko hoti hai shikayat..
Bado se hoti hai, chhoto se hoti hai.
Kuch kharo se hoti hai to kuch khoto se hoti hai.
Har baat pe hoti hai shikayat..
Rishte sambhalo to hoti hai, agar bigado to hoti hai.
Kabhi gharwalo se hoti hai, to kabhi rishtedaro se hoti hai.
Har rishte me hoti hai shikayat..
Kabhi kaam se hoti hai, to kabhi naam se hoti hai.
Kabhi sunsan sadak se to kabhi sadak pe jaam se hoti hai.
Har mod pe hoti hai shikayat..
Yu to nafrat se b hai, yu to pyaar me bhi hai.
Vishwaas mai bhi hai to vishwaasghat mai bhi hai.
Har ehsaas mai hoti hai shikayat..

Tuesday, 25 June 2013

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Saturday, 2 February 2013

DEKH TAMASHA DUNIYA KA

Dekh  tamasha  duniya  ka  , 
Tu dekh  tamashaa  duniya ka.

Tu  hasta  hai  ye  roti  hai 
Tu  rota  hai  ye  hasti  hai.
Ye  khel  purana  duniya  ka
Tu dekh  tamashaa  duniya ka.

Tujhe  lagta  hai  wo  tere  sath  hai,
Par  haqiqat  mai  to  kuch  or  baat  hai,
Ek  pal  me  hawa  ka  rukh  badal  jata  hai,
Jab  inka  mizaz  bigad  jata  hai,
Afsos  na  kar  kabhi  inke  rishte par,
Inka  to  sabse  hi  esa  naata  hai.

Is  duniya  ko  samajhna  mushkil  hai,
Hai  imaan  nahi  is  duniya  ka.
Tu dekh  tamashaa  duniya ka.

Naam  rakha  "SAMAJ"  isne,
Aur  kuritiyaa  ye  failaati  hai,
Sabko  bhinn-bhinn  tarah  ki,
Jaatiyo  se  ye  sajaati  hai,
Agar  haa  me  haa  karega  tu  iski,
Ye  teri  hi  ho  jati  hai,
Aur  agar  tune  jo  naa  kar  di,
To  ye  dushman  bhi  ban  jaati  hai,

'MAANAV DHARM'  hai  sabse  uncha,
Ye nahi  hai  naraa  duniya  kaa
Tu dekh  tamashaa  duniya ka.   

Monday, 14 January 2013

Naari Teri Wahi Kahani

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।
हे जग जननी ! हे जग माता !  किसी ने न समझी तेरी परेशानी।

सोना तपकर निखरता है जैसे , वैसे ही तू क्यों नहीं निखरी।
तेरी वो खिलखिलाती हँसी , इस समाज मे क्यों नहीं बिखरी।
क्यों तू अपना आत्म-सम्मान न पहचानी?

 सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

तेरी सेवा का कोई मोल नहीं , फिर भी तू धुत्कारी  जाती है। .
तेरी ममता का कोई तोल नहीं , फिर भी तू सताई जाती है। .
 क्यों तूने अपनी आवाज न तानी ?

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

कितना पाक़ है तेरा तेरा नारीत्व , फिर भी तुझसे ही सफाई माँगी जाती है।
तेरी तुलना देवी से करते है , पर तेरी लाचारी किसी को नहीं दिखायी जाती है।
क्या तू अब भी बनी है इन सबसे अनजानी ?

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

तेरे बिना हर कार्य अधूरा,
तेरे क्रोध की ज्वाला से , भस्म हो जाये ब्रह्माण्ड ये पूरा।
फिर क्यों तू ही हरबार सतित्व की बलि चढ़ायी जाती है ?
क्यों तेरी इस जग ने एक न मानी ?

सृजन  सृष्टि का करने वाली , अब भी तेरी वही कहानी।

स्वरचित -- स्वाति नेगी