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Saturday, 14 July 2018

Unplanned life

Life is unplanned dont waste your time on planning just go with the flow and go with the flow and enjoy the moments and also be ready for surprises.
                                            Swati Negi

Wednesday, 23 November 2016

ज़िन्दगी की आँख मचोली

जिंदगी पल भर के लिए बैठती है मेरे पास,
हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।
खुद ही दर किनार करती ही मुझे खुद से,
जो हो जाऊ तो फिर हसीन मंजर दिखा जाती है।

क्यों वो खेल रही है मुझसे,
खो-खो , कबड्डी जैसे,
गिरते, उठते, सँभलते,
मुझे देखना चाह रही हो जैसे,
एक उम्मीद जो मुझे जीना सिखाये,
हर बार वो एक उम्मीद मुझे दे जाती है,
और हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।

कुछ कारवाँ चल पड़ा है अरमानों का,
काफ़िले भी बन गए है अपने अपने,
उथल-पुथल हो गया है सब कुछ,
अब हम छाँट रहे है हक़ीक़त और सपने,
हकीकत हमें पसंद नहीं,
तो वो सपनों से मन बहला जाती है,
वो फिर से हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।

                           स्वरचित

                         स्वाति नेगी

Sunday, 2 October 2016

कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।
बरसों से दोस्ती का खंज़र थे तुम छुपाये,
अब बातचीत की सारी हदे टूट चुकी है।

अब गिन-गिन के हिसाब होगा
और यकीन मनना बेहिसाब होगा
तुम छुप के 17 मारोगे,
हम खुल के हज़ार मारेंगे,
तुम समझे तुम जीत जाओगे,
हम तुम्हे जीत का असली मतलब समझाएंगे,
वो दिन गए जब तुम हमारा सिर काट कर ले गए थे
अब तो तुम्हारे सिर कलम करने की तैयारी हो चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

अगर आँख फिर से उठायी,
तो अब आँख न रहेगी,
होगा पंच में विलीन तू
कोई निशानी न रहेगी,
ये देश होगा तेरे लिए मेरे लिये मेरी माँ है,
मेरे वतन पे एक वार, और तेरी कहानी न रहेगी,
पाकिस्तान तू ले रहा है जिन आतंकियों का सहारा,
जो हमने हमला कर दिया तो तेरी ज़मात न रहेगी,
थे बंधे हाथ अब तक तो तू हवा में उड़ रहा था
अब शेरों की टोली शिकार पर निकल चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

                      स्वरचित
                    स्वाति नेगी

सेना को समर्पित

कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।
बरसों से दोस्ती का खंज़र थे तुम छुपाये,
अब बातचीत की सारी हदे टूट चुकी है।

अब गिन-गिन के हिसाब होगा
और यकीन मनना बेहिसाब होगा
तुम छुप के 17 मारोगे,
हम खुल के हज़ार मारेंगे,
तुम समझे तुम जीत जाओगे,
हम तुम्हे जीत का असली मतलब समझाएंगे,
वो दिन गए जब तुम हमारा सिर काट कर ले गए थे
अब तो तुम्हारे सिर कलम करने की तैयारी हो चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

अगर आँख फिर से उठायी,
तो अब आँख न रहेगी,
होगा पंच में विलीन तू
कोई निशानी न रहेगी,
ये देश होगा तेरे लिए मेरे लिये मेरी माँ है,
मेरे वतन पे एक वार, और तेरी कहानी न रहेगी,
पाकिस्तान तू ले रहा है जिन आतंकियों का सहारा,
जो हमने हमला कर दिया तो तेरी ज़मात न रहेगी,
थे बंधे हाथ अब तक तो तू हवा में उड़ रहा था
अब शेरों की टोली शिकार पर निकल चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।

                      स्वरचित
                    स्वाति नेगी

Friday, 30 September 2016

वक्त की हेरा फेरी

आज फिर मैं तन्हा महसूस कर रही थी।
जहाँ से चली थी मैं आज फिर वही थी।
थी आरजू जो गुमनामी के अंधेरों में खो रही थी।
वो मेरी चाहतों के बाजुओं में दम तोड़ रही थी।
एक टीस बनकर रह गयी तेरी यादें,
कुछ अच्छी, कुछ बुरी में सभी निचोड़ रही थी।
था जाम भरा अच्छी यादों से मेरा,
एक बुरी याद जब ज़हर बनकर उसमें मिली थी।
जो चेहरे पर मेरे हँसी की सलवटें थी,
वो उदासी में करवटे बदल रही थी।

किसी ने पुकारा था मुझे अपनी बाह खोले,
वादा किया था भर देगा ख़ुशी से झोले,
हाँ वादा निभाया उसने काफी हद तक,
दिया साथ मेरा उसने आधे सफर तक,
मेरी मुस्कराहट पतझड़ के जैसे झड़ रही थी।
वो कल से अब तक के बीच लड़ रही थी।

लगा मैंने एक खूबसूरत ख़्वाब देखा,
जो टूट गया जो मैंने आँख खोली,
सोचा रो लू पर आँख से आँसू न निकला,
क्योंकि मुझे भी पता था ख़्वाब था हसीन पर उम्र थी थोड़ी,
मुझे लगा मेरे हाथ में गुलाब का सुर्ख लाल रंग है,
पता चला वो तो काँटों से मेरी हथेली रंग रही थी।
मैं जिसको रंग समझी वो खून से मुझे सन रही थी।

ये एहसास भी जरुरी था, ये अंजाम भी जरुरी था,
क्योंकि मैं अपने मुकद्दर से लड़ रही थी।
भूल गयी थी कठपुतली हूँ मैं भी मुकद्दर की,
मैं अपनी ख्वाहिशों से ज्यादा ऊँची उड़ रही थी।

                                  स्वरचित
                                 स्वाति नेगी

Wednesday, 17 August 2016

गौ रक्षा का सच

गौ रक्षा के कसीदे पढ़ने वाले लोग गौ रक्षा के नाम पर आंदोलन करते है लेकिन जब गौ संरक्षण की बात आती है तो सब न जाने कहा विलुप्त हो जाते है। लोग धर्म के नाम पर गौ रक्षा का ढिंढोरा पीटते रहते है पर जब ऐसे मसले सामने आते है तो इन लोगों की ढोल की पोल खुल जाती है। जहाँ एक तरफ गाय को माँ का दर्जा देने वाला हिन्दू समाज ही जब उसकी रक्षा के लिए आगे नहीं आना चाहता तो राष्ट्रीय माता का दर्जा दिलाने का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता। आजकल ये एक प्रथा बन चुकी है कि सबके आगे माँ जोड़ देने से ही सम्मान होता है जैसे भारत माँ , गंगा माँ , गौ माँ इत्यादि, पर असल में सम्मान किसका होता है? यह एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है भारत माता पर लोग देशविरोधी गतिविधियों में भाग लेकर वार करते है, गंगा माता में पाप भी धोते है और कचरा फेक कर गन्दा करते है और गाय माता को मात्र एक साधन बनाया है मरते वक्त स्वर्ग जाने का शादी के वक्त गो दान का, गौ मूत्र , गोबर , दुग्ध उत्पादन का भोग करने के लिए। हालांकि कांजी हाउस नाम की जगह आवारा गाय के लिए सरकार द्वारा आवंटित की गयी थी पर वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है और बंद है सवाल उठता है कि सरकार ऐसे पशुओं की व्यवस्था के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है या सरकार की नीतियों को कुछ भ्रष्ट नेता पूरा नहीं होने दे रहे। खैर कांजी हॉउस का बंद होना बहुत चिंता का विषय है।आज बड़ी खुशी हुई के मुस्लिम धर्म के लोग गौ सेवा के लिए आगे आये उम्मीद है कुछ हिन्दुओ का भी दिल पिघले। आकृति प्राणी सेवा संस्थान की सुषमा जखमोला दीदी जैसे लोगो ने आज भी गौ रक्षा के लिए तत्पर है हम सबको इनका साथ देना चाहिए। इस मौके पर सुषमा जखमोला जी, श्री जखमोला जी, तृष्णा वेलफेयर सोसाइटी की स्वाति नेगी, अमरदीप व अन्य स्थानीय लोग मौजूद थे। ये घटना रेलवे स्टेशन के नीचे लकड़ी पड़ाव की है जो काशीरामपुर के समीप है। मौके पर सुषमा जखमोला जी के द्वारा डॉक्टर को बुलाया गया तथा first-aid दिया गया।
Article by
स्वाति नेगी