कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
जो बाते ज़ुबान से बयान नहीं होती,
वो नजरों से बयान हो जाती है।
कभी हम नजरें झुकाते है , कभी नजरें उठाते है
कभी खुद को संवारते है, कभी तुम्हें निहारते है
कभी भरते है आँहे, कभी हम शरमा जाते है।
हमारी दिल्लगी ही ऐसी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
अगर तुम न समझ सको इसे, तो तुमपे न एतबार करेंगें
नज़रें फेर लेंगे तुमसे, न तुम्हारा इंतज़ार करेंगे
अगर न पहचानोगे तो बताओ हम कैसे तुम्हे प्यार करेंगे।
हमारी नाराज़गी भी ऐसी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
अगर हम बात न करे तुमसे, तो तुम्हे मनाना होगा
प्यार का ये फर्ज़ , तुम्हे भी निभाना होगा
एक बार कोशिश तो करो हमारी नज़रों को पढ़ने की
तुम्हे भी प्यार है हमसे, ये जाताना होगा।
हमारी ख्वाहिश बस इतनी सी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
हमारी हरकतों को समझो, हमारे चेहरे को पढ़ लो
अगर हम बात न करें तो, खामोशी की वज़ह समझो
हमारी मुस्कुराहटों को, हमारे दर्द को समझो
हमारी कहानी बस इतनी सी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
स्वरचित
स्वाति नेगी