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Wednesday, 14 October 2015

महंगाई की मार

ये महंगाई ले डूबी ,
तुमको भी , मुझको भी
हम सबको ले डूबी
ये महंगाई ले डूबी।


आज पेट्रोल तो कल डीज़ल की बारी ,
हर हफ्ते बस यही बीमारी ,
आम आदमी पिस्ता ही जाये ,
हाय सिलेण्डर कहर बरसाए ,
खाना कोई कैसे बनाये ,
घर में चूल्हा जल ही न पाये।


वोट मांगते समय जो खायी थी कसमें
वो  सारी झूठी।
ये महंगाई ले डूबी ,
तुमको भी , मुझको भी
हम सबको ले डूबी
ये महंगाई ले डूबी।


एक तरफ महंगाई की मार ,
दूसरा करप्शन का अत्याचार ,
वेतन न बढ़ता कभी किसी का ,
फिर करना पड़ता आंदोलन का वार ,
काम ठप होता जब इनका ,
तब सुनते ये जनता की पुकार ,


खाना महंगा पानी  महंगा
और महंगी इनकी ड्यूटी।
ये महंगाई ले डूबी ,
तुमको भी , मुझको भी
हम सबको ले डूबी
ये महंगाई ले डूबी।
                              स्वरचित
                            स्वाति नेगी

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