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Monday, 11 May 2015

Natural disaster

There are many facts to discuss in this topic but i wanna start it from starting. Its process of nature disaster and reconstruction its just as two phase of a coin. As in ancient period when it was a age of dinosaurs life starts in earth and most of animals was in developing period. All things was going right  but cause of processing of disaster of nature comet bump with earth and fall upon earth. The whole earth was again ready for reconstruction. Nature takes time to destroy and construct. Its law of nature and applied in each thing but because of some reasons the time period of disaster reduce. Now days disaster is just like a monthly or weekly show. This is a very serious matter to think that what are the main causes of it. The outer and inner both environment impact on the earth, behavior of earth both are responsible.
      Here I wanna take your attention towards some facts as pollution, population, hole in ozone layer increasing day by day, exceed of garbage, lack of recycling and the main factor is we are avoiding our nature, our natural resources. We are hurting nature in the name of invention and experiment. I request all the people to protect nature use natural products and also each people should do plantation. Its our duty to beautify our earth and make it heaven.

By Swati Negi

Saturday, 27 December 2014

MERI SADAK

ek raste pe pada paththar b sadak par apna hak jatata hai
kehta hai ye meri sadak hai
or ham us paththar ko waha se hatakar khte hai
ki ye meri sadak hai
or barsat mai sadko pe bhara pani khta he
ki ye meri sadak hai.........


Barish se hue gadhdhe kayi
un gadhdho ne b kaha ye meri sadak hai
Politicians ki jab sawari nikalti
To jaha gadi jaye wo uski sadak hai
Aam admi jab ghar se nikle
wo b kahe ye meri sadak hai.


Na teri na meri ye kiski sadak hai
Contractors ki thi tab jab tak nahi bani thi
Ban gayi to kiski sadak hai
Jodti hai gao ko seher se 
Ye duriyo ko ghatati esi sadak hai.
Ye kashmir se kanyakumari ko jodti 
Mere desh ki sadak hai.
Na ganda krna ise hamesha saaf rakhna
Ye teri b hai ye meri b hai
Ye hamari sadak hai

Made by 
SWATI NEGI

Sunday, 17 August 2014

Janmashtmi ke parv par Bhagwan Shri Krishna ko samarpit

Krishna agar jel mai janm na pate,
to vrindavan ka udhdhaar kese kar pate

Krishna ke agar mata pita na badle jate,
To akaasvani ko kese satya kar pate

Krishna agar makhan na churate,
To gopiyo ke man ko kese bhate

Krishna agar kaaliya ko na dhhul chatate,
To sarowar ko dushit hone se kese bachate

Krishna agar kans ko na marte,
To dharm sthapit kese kar pate

Krishna agar Mathura hi ruk jate,
To wishwa ke log unke darshan kese pate

Krishna agar leela nahi rachate,
To Bhagwan kese kehlaate

Krishna agar solah hazaar shaadiya na rachate,
To un kanyao ki laaj kese bachate.



                              written by
                            Swati Negi

Friday, 18 April 2014

Hay Rajneeti!

हाय राजनीति बनी बवाल
राजनेताओं की साज़िश और चाल
हाय राजनीति बनी बवाल।

भ्रष्टाचार और महँगाई
इनकी खाई खूब मलाई
मोटा पैसा गए डकार
गरीब जनता पे पड़ गयी मार
संसद में लड़ाई और दंगा
बाहर आकर सब कुछ चंगा
जनता पिसती जाए इन सबमें

आया अब जनता में उबाल
हाय राजनीति बनी बवाल।

मैं ज्यादा तू कम ही खाना
मिलकर गाये सब  गाना
तेरी या मेरी सरकार
मिलकर करेंगे देश पे वार
करोड़ो से अब भर गया पेट
अब अरबों का करना है वेट
अन्ना जी ने जलायी मशाल
जल्दी आएगा लोकपाल
पर देश का संचालक मूक बधिर है
यही समस्या बड़ी जटिल है
रामदेव भी बचे  इससे

देख लो साधू बाबा का हाल
हाय राजनीति बनी बवाल।

मत  पूछो बस इनकी बात
दानवों को भी देदी इन्होंने मात
नोटों के गद्दे नोटों की रजाई
पूरी हवेली नोटों से सजाई
ऐसे मनती है इनकी दीवाली
गरीब के घर न दाना पानी
भ्रष्टाचार के रंग में लिपटे
होली खेल रहे है जमके

ऐसे ही मनाते है  त्यौहार
हाय राजनीति बनी बवाल

बच्चों ने भी  बाप से सीखा
सब कुछ इसने आप से सीखा
पहले देश पुरखो ने खाया
बाकी बचा बेटे को थमाया
ये तो पूरी खानदानी बीमारी है
ये आगामी चुनाव की तैयारी है
अभी तो हाथ जोड़ने का वक्त
बाद में हाथ तोड़ने का वक्त है
ये राजनीति का नियम बड़ा सख्त कई
सब जगह फैला गरीब का रक्त है

समझो इसे ये है राजनीति का जाल
हाय राजनीति बानी बवाल।
                               स्वरचित
                              स्वाति नेगी

Wednesday, 16 April 2014

सुंदरता (BEAUTY)

Mai sochu kya hai sundarta.......

Mai manan karu, mai chintan karu,
Kya kaaya mai hai sundarta, yaa chhayaa mai hai sundarta,

Mai sochu kya hai sundarta.......

Jo tan sundar ho praani ka, chakshu bhi bandhe reh jate hai,
Ye kaisi hai mukh ki maaya, sab darshan ko lalchate hai,
Nayno ke dwar se wo pratima, hriday me kuch ese bas jati hai,
Kare laakh prayatn bhulaa dena ka, par ek amit chhap reh jaati hai,

Kya sach mai esi hai sundarta,
Mai sochu kya hai sundarta.......

Ye duniya sundarta par nyuchhawar hai, ye bas bahya aakarshan ka saawan hai,
Sab bhul gaye ham jante hai rituai to badalti belaa hai,
Koi truti nahi hai tum sabki ye sundarta ka maila hai,
Tan shan bhar k liye hi, tumhe unchayi par pahuchata hai,
Par man ki pawan nirmalta se har pal ek nayaa shikhar mil jaata hai,
Ye shanik nahi ye deerghayu hai, ye shareer ka saath nibhata hai,
Tan Man dono sang sang hai, tu kyu inme matbhed banata hai,

Man jaisi nirmal hai sundarta,
Mai sochu kya hai sundarta.......

Sun Sun prani meri vani, tan man ka tu mol bhaw naa kar,
Hai agar teri bhaawna sahi, to vyarth ki baaton ka pashchatap na kar,
Bas karna itna jeewan bhar, shareer se sundar tumhari aatmaa ho,
Ho chaah uski sarvshaktimaan ko, parmatma mai vileen wo param aatma ho,

Fir nishchhal teri sundarta,
Mai sochu kya hai sundarta.......

Sunday, 13 April 2014

लहरें.......

लहरे आती है फिर आके  चली जाती है
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास
समंदर के  अंदर समंदर के बाहर
कभी मझदार तो कभी किनारे का आभास

मैं छूना चाहूँ उसको  वो वापस चली जाती है
और फिर दूर  जाकर मुझसे  वो बड़ा इतराती है
फिर मेरी राहों में मचलकर वापस आ जाती है
मानो रोकती हो मुझको और कहती हो

ये पल ही तो है हमारे पास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।

फिर मेरी कल्पना ने जाने कैसे बांह खोली
समंदर दिख रही हो जैसे दुल्हन नवेली
उसका आना और लौट कर जाना
 जैसे दिखा रही थी मुझको वो अपनी अटखेली
और कहती करके वो मुझसे हँसी ठिठोली

ये लम्हा यादगार बन जाए बना दो इतना ख़ास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।


ये पूरा नज़ारा इतना मनभावन है  
जितना तेरा मेरा रिश्ता पावन है
मैं  बैठा हूँ किनारे पे और ये सोच रहा हूँ
कहाँ  था अब तक मैं खुद को कोस रहा हूँ
जिस सुंदरता को मैं इधर उधर तलाश रहा हूँ
वो तो मेरे पास ही है इस  बात से मैं हैरान हुवा हूँ

वो मुझसे पूछती हो जैसे  तुम्हारा मन क्यों है उदास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।


मैं आगे फिर बढा इस बार अपनी साँस थामे
जैसे जा रहा हूँ मैं भी उसको मनाने
मैं धीरे धीरे जैसे उसकी गोद समा गया
मानो वो मुझसे कह रही हो जैसे
तुम्हें भी मनाना आ गया

चलो मैं मान गयी अब न करना मुझे नाराज़
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास



                                 स्वरचित
                            स्वाति नेगी


Monday, 12 August 2013

मेरा वतन

ये है मेरा वतन   ये है मेरा वतन
गुलशनो का चमन  ये है मेरा वतन
हर तरह के फूल है हर तरह के रंग है
हर एक फूल है नया और नया सा ढंग है
है नये नये गुलशन ये है मेरा वतन


कई है बोलियाँ   कई मजहब यहाँ
कई त्यौहार है    दिलों में प्यार है
है दिल को दिल से जोड़ता
ये हमारा हिंदुस्तान है
रहमते और करम ये है मेरा वतन


है इतना सब कुछ फिर भी ---------


सरहदो पे क्यों लहू है तैरता
देश को चलाने वाला देश को है बेचता
क्यों लड़ रहे है आज आपस में वो सभी
जिन्हें गुमान था आज क्यों है प्यार फेंकता
न जाने क्यों हुआ मेरे वतन का हाल ये
दिलों में प्यार था कहाँ गया माहोल ये
न है जिनके दिलों में वफ़ा वतन के लिए
इन देशद्रोहियों को देश से निकाल  दे



होगी एक दिन नई सुबह
लेके एक नई किरन  ये है मेरा वतन
ये है मेरा वतन 

       स्वरचित 
      स्वाति नेगी