Sunday, 13 April 2014

लहरें.......

लहरे आती है फिर आके  चली जाती है
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास
समंदर के  अंदर समंदर के बाहर
कभी मझदार तो कभी किनारे का आभास

मैं छूना चाहूँ उसको  वो वापस चली जाती है
और फिर दूर  जाकर मुझसे  वो बड़ा इतराती है
फिर मेरी राहों में मचलकर वापस आ जाती है
मानो रोकती हो मुझको और कहती हो

ये पल ही तो है हमारे पास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।

फिर मेरी कल्पना ने जाने कैसे बांह खोली
समंदर दिख रही हो जैसे दुल्हन नवेली
उसका आना और लौट कर जाना
 जैसे दिखा रही थी मुझको वो अपनी अटखेली
और कहती करके वो मुझसे हँसी ठिठोली

ये लम्हा यादगार बन जाए बना दो इतना ख़ास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।


ये पूरा नज़ारा इतना मनभावन है  
जितना तेरा मेरा रिश्ता पावन है
मैं  बैठा हूँ किनारे पे और ये सोच रहा हूँ
कहाँ  था अब तक मैं खुद को कोस रहा हूँ
जिस सुंदरता को मैं इधर उधर तलाश रहा हूँ
वो तो मेरे पास ही है इस  बात से मैं हैरान हुवा हूँ

वो मुझसे पूछती हो जैसे  तुम्हारा मन क्यों है उदास
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास।


मैं आगे फिर बढा इस बार अपनी साँस थामे
जैसे जा रहा हूँ मैं भी उसको मनाने
मैं धीरे धीरे जैसे उसकी गोद समा गया
मानो वो मुझसे कह रही हो जैसे
तुम्हें भी मनाना आ गया

चलो मैं मान गयी अब न करना मुझे नाराज़
बस पीछे छोड़ जाती है वो ठंडा सा एहसास



                                 स्वरचित
                            स्वाति नेगी


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