This is not about what life choose for you, this is about what you choose for life.
Swati Negi
I created this Blog to share my views with u. What I think? Please appreciate me if you really like my work Thanks
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Sunday, 15 July 2018
Life quotes
Saturday, 14 July 2018
Unplanned life
Life is unplanned dont waste your time on planning just go with the flow and go with the flow and enjoy the moments and also be ready for surprises.
Swati Negi
Friday, 20 January 2017
Wednesday, 23 November 2016
ज़िन्दगी की आँख मचोली
जिंदगी पल भर के लिए बैठती है मेरे पास,
हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।
खुद ही दर किनार करती ही मुझे खुद से,
जो हो जाऊ तो फिर हसीन मंजर दिखा जाती है।
क्यों वो खेल रही है मुझसे,
खो-खो , कबड्डी जैसे,
गिरते, उठते, सँभलते,
मुझे देखना चाह रही हो जैसे,
एक उम्मीद जो मुझे जीना सिखाये,
हर बार वो एक उम्मीद मुझे दे जाती है,
और हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।
कुछ कारवाँ चल पड़ा है अरमानों का,
काफ़िले भी बन गए है अपने अपने,
उथल-पुथल हो गया है सब कुछ,
अब हम छाँट रहे है हक़ीक़त और सपने,
हकीकत हमें पसंद नहीं,
तो वो सपनों से मन बहला जाती है,
वो फिर से हँस के मेरा हाल पूछ कर चली जाती है।
स्वरचित
स्वाति नेगी
Sunday, 2 October 2016
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।
बरसों से दोस्ती का खंज़र थे तुम छुपाये,
अब बातचीत की सारी हदे टूट चुकी है।
अब गिन-गिन के हिसाब होगा
और यकीन मनना बेहिसाब होगा
तुम छुप के 17 मारोगे,
हम खुल के हज़ार मारेंगे,
तुम समझे तुम जीत जाओगे,
हम तुम्हे जीत का असली मतलब समझाएंगे,
वो दिन गए जब तुम हमारा सिर काट कर ले गए थे
अब तो तुम्हारे सिर कलम करने की तैयारी हो चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।
अगर आँख फिर से उठायी,
तो अब आँख न रहेगी,
होगा पंच में विलीन तू
कोई निशानी न रहेगी,
ये देश होगा तेरे लिए मेरे लिये मेरी माँ है,
मेरे वतन पे एक वार, और तेरी कहानी न रहेगी,
पाकिस्तान तू ले रहा है जिन आतंकियों का सहारा,
जो हमने हमला कर दिया तो तेरी ज़मात न रहेगी,
थे बंधे हाथ अब तक तो तू हवा में उड़ रहा था
अब शेरों की टोली शिकार पर निकल चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।
स्वरचित
स्वाति नेगी
सेना को समर्पित
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।
बरसों से दोस्ती का खंज़र थे तुम छुपाये,
अब बातचीत की सारी हदे टूट चुकी है।
अब गिन-गिन के हिसाब होगा
और यकीन मनना बेहिसाब होगा
तुम छुप के 17 मारोगे,
हम खुल के हज़ार मारेंगे,
तुम समझे तुम जीत जाओगे,
हम तुम्हे जीत का असली मतलब समझाएंगे,
वो दिन गए जब तुम हमारा सिर काट कर ले गए थे
अब तो तुम्हारे सिर कलम करने की तैयारी हो चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।
अगर आँख फिर से उठायी,
तो अब आँख न रहेगी,
होगा पंच में विलीन तू
कोई निशानी न रहेगी,
ये देश होगा तेरे लिए मेरे लिये मेरी माँ है,
मेरे वतन पे एक वार, और तेरी कहानी न रहेगी,
पाकिस्तान तू ले रहा है जिन आतंकियों का सहारा,
जो हमने हमला कर दिया तो तेरी ज़मात न रहेगी,
थे बंधे हाथ अब तक तो तू हवा में उड़ रहा था
अब शेरों की टोली शिकार पर निकल चुकी है।
कल तक जो हाथ बंधे थे,
अब उनकी बेड़िया खुल चुकी है।।
स्वरचित
स्वाति नेगी
Friday, 30 September 2016
वक्त की हेरा फेरी
आज फिर मैं तन्हा महसूस कर रही थी।
जहाँ से चली थी मैं आज फिर वही थी।
थी आरजू जो गुमनामी के अंधेरों में खो रही थी।
वो मेरी चाहतों के बाजुओं में दम तोड़ रही थी।
एक टीस बनकर रह गयी तेरी यादें,
कुछ अच्छी, कुछ बुरी में सभी निचोड़ रही थी।
था जाम भरा अच्छी यादों से मेरा,
एक बुरी याद जब ज़हर बनकर उसमें मिली थी।
जो चेहरे पर मेरे हँसी की सलवटें थी,
वो उदासी में करवटे बदल रही थी।
किसी ने पुकारा था मुझे अपनी बाह खोले,
वादा किया था भर देगा ख़ुशी से झोले,
हाँ वादा निभाया उसने काफी हद तक,
दिया साथ मेरा उसने आधे सफर तक,
मेरी मुस्कराहट पतझड़ के जैसे झड़ रही थी।
वो कल से अब तक के बीच लड़ रही थी।
लगा मैंने एक खूबसूरत ख़्वाब देखा,
जो टूट गया जो मैंने आँख खोली,
सोचा रो लू पर आँख से आँसू न निकला,
क्योंकि मुझे भी पता था ख़्वाब था हसीन पर उम्र थी थोड़ी,
मुझे लगा मेरे हाथ में गुलाब का सुर्ख लाल रंग है,
पता चला वो तो काँटों से मेरी हथेली रंग रही थी।
मैं जिसको रंग समझी वो खून से मुझे सन रही थी।
ये एहसास भी जरुरी था, ये अंजाम भी जरुरी था,
क्योंकि मैं अपने मुकद्दर से लड़ रही थी।
भूल गयी थी कठपुतली हूँ मैं भी मुकद्दर की,
मैं अपनी ख्वाहिशों से ज्यादा ऊँची उड़ रही थी।
स्वरचित
स्वाति नेगी