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Saturday 30 July 2016

Ray Of Hope

Oh God you always gave me,
A ray of hope, a ray of hope.

Yes I was surrounded by lots of enemies,
Most of them was my best buddies,
Oh yes how fool was I ,
They were in front of me and I closed eyes,
You make me awake timely
Oh God you always gave me,
A ray of hope , a ray of hope.

I was suffering through heart-break,
All the moments I captured was fake,
I feel myself in the depth of dark,
I was wondering that I had no one to talk ,
There were unbelievable facts in front of me,
Oh God you always gave me,
A ray of hope , a ray of hope.

It happens continuously with my life,
My friends my relatives no one was my side,
No one accept that I am innocent,
A painful experience and my mind goes blank,
But after sometimes I feel happy,
Because you were always there for me,
Oh God you always gave me,
A ray of hope , a ray of hope.


Thursday 28 July 2016

उलझन

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते,
बिखरे पन्ने किताब नहीं होते,
यूंही वीरान कट जाती है कुछ रातें,
कुछ रातों के ख़्वाब नही होते।

जिन्दगी में मिलती है कामयाबी भी,
लेकिन कुछ कामयाबियों के ख़िताब नही होते।

यूं तो ख़ुशी और गम सब पल है जिन्दगी के,
पर कुछ लम्हे है जिनके हिसाब नहीं होते।

दर्द भी बहुत मिलते है इस लंबे सफर में,
कुछ दर्द ऐसे भी है जिनके एहसास नही होते।

बहुत कुछ सोच लेते है हम बिना किसी मतलब के,
क्योंकि सोचने के कोई आकार नहीं होते।

कई रिश्ते बनाते हम अपनी मर्ज़ी से,
पर कई रिश्तों से हम आबाद नही होते।

जो रिश्ते जुड़ गये है उनसे खुश है लेकिन,
कुछ रिश्ते ऐसे है जिनमे जज़्बात नहीं होते।

घूमती है घड़ी की सुइयाँ टिक-टिक टिक-टिक
और कुछ पलों  के आग़ाज नही होते।

खिलखिलाती है कलियाँ महकता है गुलशन,
उस गुलशन में काँटों पर बखान नही होते।
   

                                 स्वरचित
                                स्वाति नेगी

Sunday 24 July 2016

नारी का मौन प्रश्न

तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?
मेरी पवित्रता का मोल कब जानोगे ?

कभी बाहर निकलती हूँ जो घर से,
तुम्हारी गिद्ध जैसी नज़रों से आहत होती हूँ।
क्या में आहार हूँ तुम्हारा ?
ये बात सोच - सोच कर रोती हूँ।
क्यों मैं खुल के जी नहीं सकती ?
जो चाहूँ वो कर नहीं सकती,
तुम मुझे ये दंश कब तक दोगे ?
तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?

क्या मैं तुम्हारे लिये मात्र मनोरंजन की वस्तु हूँ ?
या मैं तुम्हारी संतुष्टि मात्र का साधन हूँ।
क्या तुम्हारी अतृप्त प्यास को बुझाना इतना ज़रूरी है,
कि तुम किसी भी लाचार पर एसा भयंकर क़हर बरसाओगे ?
खुद की हवस की भूख मिटाकर,
क्या मेरा पाक चरित्र फिर से वापस ला पाओगे ?
धिक्कार है तुम्हारे इंसान होने पर,
तुम्हारे पुरूष होने का अभिमान होने पर,
पुरूष तो नारी का संरक्षक है,
न की उसका भक्षक है,
इस कृत्य के लिये तुम कब नर्क भोगोगे ?
तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?

पुरूष और नारी एक दूसरे के पूरक है,
दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं,
कोई भी कार्य तभी शुभ फलदायक है,
जब दोनों की सहमति हो।
वो कार्य पाप से कम नहीं जिसमें
किसी की भी असहमति हो।
नारी का तो सर्वश्रेष्ठ स्थान है,
क्योंकि नारी ही तेरी उत्पत्ति का आधार है।
तुम्हारा पौरूष है युद्ध के स्थान में वीरता दिखाना,
न कि एक अबला नारी से बलपूर्वक अपनी इच्छा मनवाना,
अपने पौरूषत्व की माला तुम कब तक जपोगे ?
तुम मेरी पीड़ा कब समझोगे ?
                      स्वरचित
                     स्वाति नेगी

Wednesday 13 July 2016

हमारी खामोशी

कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।
जो बाते ज़ुबान से बयान नहीं होती,
वो नजरों से बयान हो जाती है।

कभी हम नजरें झुकाते है , कभी नजरें उठाते है
कभी खुद को संवारते है, कभी तुम्हें निहारते है
कभी भरते है आँहे, कभी हम शरमा जाते है।
हमारी दिल्लगी ही ऐसी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

अगर तुम न समझ सको इसे, तो तुमपे न एतबार करेंगें
नज़रें फेर लेंगे तुमसे, न तुम्हारा इंतज़ार करेंगे
अगर न पहचानोगे तो बताओ हम कैसे तुम्हे प्यार करेंगे।
हमारी नाराज़गी भी ऐसी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

अगर हम बात न करे तुमसे, तो तुम्हे मनाना होगा
प्यार का ये फर्ज़ , तुम्हे भी निभाना होगा
एक बार कोशिश तो करो हमारी नज़रों को पढ़ने की
तुम्हे भी प्यार है हमसे, ये जाताना होगा।
हमारी ख्वाहिश बस इतनी सी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

हमारी हरकतों को समझो, हमारे चेहरे को पढ़ लो
अगर हम बात न करें तो, खामोशी की वज़ह समझो
हमारी मुस्कुराहटों को, हमारे दर्द को समझो
हमारी कहानी बस इतनी सी है,
हमारी खामोशी यही तुम्हे समझाती है।
कोई कोशिश तो करे समझने की,
खामोशी को भी ज़ुबान मिल जाती है।

                               स्वरचित
                              स्वाति नेगी

Friday 1 July 2016

एक वादा

आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,
उसकी दी सारी खुशियां सारे ग़म अपने दामन में भर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

एक वादा कभी न रुकने का,
एक वादा कभी न थकने का,
एक वादा खुशियां लाने का,
एक वादा ग़म भुलाने का,
आओ कुछ खट्टी मीठी यादों से
जिंदगी में रंग फिर से भर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

मुसीबतों के आगे घुटने न टेकने का वादा,
विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न खोने का वादा,
हर पल खुद पर विश्वास रखने का वादा,
फिर से जिंदादिली से जिंदगी जीने का वादा,
जिंदगी की राहों में वो मंजिलों का रास्ता फिर से तय कर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

वादा ऐसा जो कभी न टूटे,
जिंदगी का साथ कभी न छूटे,
वादा ऐसा जो विश्वास न तोड़े,
कैसी भी राहे हो हाथ न छोड़े
इस बार एक नई सुबह के साथ जिंदगी में चिड़ियों की चहचाहट भी भर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,

खुद को संवारना है एक वादा ऐसा भी,
खुद के लिए भी जीना है एक वादा ऐसा भी,
खुद से खुद की पहचान करानी है एक वादा ऐसा भी,
खुद की नज़र में कभी नही गिरना है एक वादा ऐसा भी,
चलो एक बेहतर जिंदगी की शुरुआत खुद से ही कर लें।
आओ एक वादा जिंदगी से भी कर लें,
                       

                                       स्वरचित
                                      स्वाति नेगी