नव्ज तुम्हारी चले, तो साँसे मेरी हो |
हम-तुम कुछ मिलें इस तरह,
कि दिल तुम्हारा धड़के, तो धड़कन मेरी हो |
हवाओं का इशारा है, कि तुमने हर जर्रा सवारा है
ये आशिकि हमारी कुबूल कर लो,
हमें दिल में बसाने की ज़रा सी भूल कर लो
हम परिंदे नहीं जो उड़ जायेंगे
हम तुम्हारी महफिल के वो परवाने हैं,
जिधर श़मा(तुम) जलेगी, उधर ही मुड़ जाएंगे
इस इश्क के समन्दर में,
किश्ती तुम्हारी उतरे तो पतवार मेरी हो |
नजारा तुम देखो, आँखें मेरी हो |
नव्ज तुम्हारी चले, तो साँसे मेरी हो |
न धरती में न अंबर में, सुकून मिलता नहीं बिन तेरे
तूफान भी अब ज़ोरों पर है, ये मेरी मुहब्बत का असर है
सम्भल कर डोर थामे रखना,
और थोड़ा इतमीनान रखना
ये बस कुछ पल का खेल है,
होने वाला दो दिलों का मेल है
बस इतना पाक हो हमारा रिश्ता,
कि खुशियाँ तुमको मिले, मुस्कान मेरी हो |
नजारा तुम देखो, आँखें मेरी हो |
नव्ज तुम्हारी चले, तो साँसे मेरी हो |
स्वरचित
स्वाति नेगी